जनरपट के पहले अंक को प्रकाशित करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है। इसके द्वारा जमीनी मुद्दों को सामने लाने और उन पर संवाद कायम करने का प्रयास किया जा रहा है।
जाहिर है, पिछले डेढ़ दशक से देश में जनभागीदारी से विकास के कई प्रयास हो रहे हैं। पंचायत राज के माध्यम से गांव की सत्ता और विकास के काम ग्रामवासियों के हाथों में सौपे जा चुके हैं। इसमें दलित, आदिवासी समुदायों तथा महिलाओं को बराबरी की भागीदारी के संवैधानिक प्रावधानों को लागू किया गया है। सूचना के अधिकार के जरिये
सरकारी कामों में पारदर्शिता लाने और नौकरशाही को उत्तरदायी बनाने की कोशिश हुई है। रोजगार गारंटी सहित कई विकास योजनाओं के क्रियान्यन व फैसले का अधिकार भी ग्रामवासियों को प्रदान किया गया है। इसके बावजूद सत्ता और विकास के कामों में लोगों की पूर्ण सहभागिता को लेकर कई सवाल सामने आते हैं। सरकारी प्रावधान को जमीनी धरातल पर लागू करते हुए कई तरह की समस्याएं समाने आती रही है। गांव के पुरातन सामंती ढांचें और नौकरशाही के रूतबे के चलते लोगों को अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करने में कठिनाइयां आती है। खासकर दलित, अदिवासी समुदायों व महिलाओं को सत्ता में भागीदारी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
इस मामले में कम्युनिटी एण्ड कम्युनिकेशन नेटवर्क (सीसीएन) द्वारा मीडिया की विकास परक भूमिका तलाशने की कोशिश की गई है। यह देखा गया है कि सत्ता के विकेन्द्रिकरण के साथ ही मीडिया तक लोगों की पहुंच अपेक्षित रूप से नहीं हो पा रही है और वे अपने मुद्दों को सामने नही ला पा रहे हैं। स्थानीय स्वशासन और विकास के मुद्दों को मीडिया अपनी तरफ से तो उठा पा रहा है, लेकिन लोगों की ओर से मीडिया तक अपने मुद्दो को पहुंचाने का तरीका इजाद करने की जरूरत लगातार महसूस हो रही है। अत: सीसीएन द्वारा दूरदराज के गांवों के युवक-युवतियों को लेखन प्रशिक्षण के जरिये मुद्दों को मीडिया तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
हमारी कोशिश है कि जनरपट जनता का अखबार बनें, इसके माध्यम से वे अपनी बात सामने ला सकें। जनरपट के रूप में सीसीएन ने अपनी सीमित संसाधनों के जरिये विकास पत्रकारिता की एक पहल की है। इस पहल में
आप सभी का स्वागत है। जनरपट को निरंतर गति देने और निखारने के लिए आपके सुझावों का इतंजार रहेगा।
जाहिर है, पिछले डेढ़ दशक से देश में जनभागीदारी से विकास के कई प्रयास हो रहे हैं। पंचायत राज के माध्यम से गांव की सत्ता और विकास के काम ग्रामवासियों के हाथों में सौपे जा चुके हैं। इसमें दलित, आदिवासी समुदायों तथा महिलाओं को बराबरी की भागीदारी के संवैधानिक प्रावधानों को लागू किया गया है। सूचना के अधिकार के जरिये
सरकारी कामों में पारदर्शिता लाने और नौकरशाही को उत्तरदायी बनाने की कोशिश हुई है। रोजगार गारंटी सहित कई विकास योजनाओं के क्रियान्यन व फैसले का अधिकार भी ग्रामवासियों को प्रदान किया गया है। इसके बावजूद सत्ता और विकास के कामों में लोगों की पूर्ण सहभागिता को लेकर कई सवाल सामने आते हैं। सरकारी प्रावधान को जमीनी धरातल पर लागू करते हुए कई तरह की समस्याएं समाने आती रही है। गांव के पुरातन सामंती ढांचें और नौकरशाही के रूतबे के चलते लोगों को अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करने में कठिनाइयां आती है। खासकर दलित, अदिवासी समुदायों व महिलाओं को सत्ता में भागीदारी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
इस मामले में कम्युनिटी एण्ड कम्युनिकेशन नेटवर्क (सीसीएन) द्वारा मीडिया की विकास परक भूमिका तलाशने की कोशिश की गई है। यह देखा गया है कि सत्ता के विकेन्द्रिकरण के साथ ही मीडिया तक लोगों की पहुंच अपेक्षित रूप से नहीं हो पा रही है और वे अपने मुद्दों को सामने नही ला पा रहे हैं। स्थानीय स्वशासन और विकास के मुद्दों को मीडिया अपनी तरफ से तो उठा पा रहा है, लेकिन लोगों की ओर से मीडिया तक अपने मुद्दो को पहुंचाने का तरीका इजाद करने की जरूरत लगातार महसूस हो रही है। अत: सीसीएन द्वारा दूरदराज के गांवों के युवक-युवतियों को लेखन प्रशिक्षण के जरिये मुद्दों को मीडिया तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
हमारी कोशिश है कि जनरपट जनता का अखबार बनें, इसके माध्यम से वे अपनी बात सामने ला सकें। जनरपट के रूप में सीसीएन ने अपनी सीमित संसाधनों के जरिये विकास पत्रकारिता की एक पहल की है। इस पहल में
आप सभी का स्वागत है। जनरपट को निरंतर गति देने और निखारने के लिए आपके सुझावों का इतंजार रहेगा।